विधायकों पर हमला, FIR में देरी और बड़े अधिकारियों की बचाव नीति पर सवाल
बहराइच में विधायक की पिटाई के मामले में अब तक कार्रवाई को लेकर जनता में आक्रोश बढ़ रहा है। आरोपी पर FIR दर्ज करने में छह दिन की देरी से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यह देरी क्या केवल इसलिए हुई कि संबंधित विधायक पिछड़े वर्ग से आते हैं, या फिर प्रदेश में विधायकों के प्रति अधिकारियों का रवैया ही बदल गया है? यह विचारणीय है कि क्या विधायकों का प्रोटोकॉल अब इतना कमजोर हो गया है कि अधिकारी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते? आने वाले चुनावों में जनता इन सवालों का जवाब देगी।
इसी बीच बहराइच में गोपाल मिश्रा की निर्मम हत्या के मामले में शासन ने तुरंत चौकी इंचार्ज और थानाध्यक्ष पर कार्रवाई की। हालांकि, हमेशा की तरह बड़े अधिकारी इस बार भी बच निकले। यह पैटर्न पिछले सात साल से भाजपा सरकार के कार्यकाल में बार-बार देखने को मिल रहा है। हर बार अधिकतर छोटे और मध्यम स्तर के कर्मचारी ही दंडित होते हैं, जबकि बड़े अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
सरकार का अपने विधायकों की अनदेखी और बड़े अधिकारियों पर मेहरबानी, यही सोच सरकार की चुनावी नैया डुबा सकती है। छोटे या मझोले चुनावों में यह रणनीति शायद कुछ हद तक सफल हो जाए, लेकिन आम चुनाव में इसका असर दिखता है। 2017 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में हुए चुनाव और 2024 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हुए चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है।
अब आने वाले चुनावों में क्या होगा, यह देखना बाकी है, लेकिन स्थिति चिंताजनक है।
– अमित तोमर